भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ले ले हे गोरी म्हारी नमस्ते हम तो नौकर चाल पड़े / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ले ले हे गोरी म्हारी नमस्ते हम तो नौकर चाल पड़े
ना लेऊं हो पिया थारी नमस्ते तुम तो नौकर चाल पड़े
आ रह्या सै तेरा बड़ला बीरा गैल बीर के डिगर जाइये
पीहर जाऊं ना रहूं सासरे, संग बालम तेरे चालूंगी
बारा वर्ष में पिया घर आये लेण गया उस नाजों नै
क्यूं हो बेटा के दुख लाग्या के दुख लाग्या मेरी जाई ने
हम तो री माता नौकर चाले आप की या नौकरी से नाटै सै
झूठ पति तू झूठ मत बोले संग जाण की कह रही सूं
ला दे हो साफा छत्री झोला घर अपणे ने डिगर जांगा
घाल खटोला आंगण मैं सो गया भावज आण जगा रही सै
क्यूं हो देवर क्यूं नहीं ल्याया क्यूं छोड़ आया मां बापां कै
बोलै मत ना बिघन हो जागा नार छुटा दी हथणी सी
उस ने छोड़ कै दूसरी ब्याह ले रह लेण दे मां बापां कै
उस ने छोडूं ना दूसरी ब्याहूं, ना लाऊं गा उस नाजो नै