भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लै ले चहचिन्दा दै दे जवा / बघेली
Kavita Kosh से
बघेली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
लै ले चहचिन्दा दै दे जवा
हम घरे जईं घरे बालक रोवै
अरे उइं चिहचिन्दा का एड़ के चीरेन बेड़ के चीरेन
निकरा हरिअरा बांस हो
ओही बांस के अड़ी बनायन छड़ी बनायन
गौवा बहोरन जांव हो
ओइड़े गोइड़े गौवा बगरि गई
भइंसि बगरि गई ताल हो
ओही ताल मां इनकी चाउर किनकी चाउर
गोली भइसि का दूध हो
अपने भइया का अस के खवाइउं अस के पियाइउं
हंसत खेलत घर जाइं हो
अपने देवर का अस के खवउवै अस के पियउबै
कांखत कराहत जाइं हो
जउन घाट मोरे भइया नहाने केमला का फूल उतराइ हो
जउन घाट मोर देवरा नहाने
सुउरी डबरा लेइ हो
जीने महलि मोरे भइया जी रेंगइ
राजा जोहारत जाइं हो
जउन गइलि मोर देवरा जी रेगइं
धोबिया जोहारत जाइं हो