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लॉकडाउन में मरीन ड्राइव / अमृता सिन्हा

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मरीन ड्राइव पर
बेहद सन्नाटा रहा इन दिनों

कभी बेशुमार भीड़ में डूबा
रहा करता
मरीन ड्राइव
भौंचक्का है
सड़कों के भांय-भांय करते
सूनेपन पर।

ठगा-सा, अलबलाया मरीन ड्राइव
ढूँढ़ता है उन प्रेमिल जोड़ों को
जो होते थे प्रेम में बेपरवाह
अपनी बेसाख़्ता हँसी के साथ

अब न उनकी पदचाप है न आवाज़
न घर लौटते लोगों की दौड़ भाग
न ट्रैफ़िक, ना शोर, ना धुँआ
बचा है सिर्फ़ ख़ालीपन
उदास सड़कें, कुछ ख़ामोश पेड़ और
गोल घुमावदार दीवारों का लंबा घेरा
जिन्हें कहीं नहीं जाना
बस पसरे रहना है यहीं।

बचे हैं कुछ सफ़ेद बादल
साफ़ सुथरा नीला आसमान
बिंदास उड़ते परिंदे
आज़ाद कछुए
और ख़ुशमिज़ाज मछलियाँ

सागर से उठती लहरें
अब ज़रा और शोख़ हो चली हैं
क्षितिज की रंगत
थोड़ा ज़्यादा चटख

पर अब कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका
के कंधों पर झुका नहीं दीखता
सिर्फ़ मछलियाँ ही
चूमती हैं लहरों को
बेरोकटोक।