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लोक गीत / 2 / भील

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सोरी काँकड़ आम्बे मोरियो रेऽऽऽ
हो राज आम्बे झरे मोरिया रेऽऽऽ।
सोरी काँकड़ आम्बे मोरियो रेऽऽऽ।
हो राज आम्बे झरे मोरिया रेऽऽऽ।
सोरा तमे हूँ भाली न मोहवायो हो राज
हो राज आम्बे झरे मोरिया रेऽऽऽ।
तारो बोर ड़ो भाली न मोहवायो
हो राज आम्बे झरे मोरिया रेऽऽऽ।
सोरी हूँ भाली न मोहवायो हो राज
हो राज आम्बे झरे मोरिया रेऽऽऽ।
तारो पागुलो भाली न मोहवाया
हो राज आम्बे झरे मोरिया रेऽऽऽ।
सोरी काँकड़ आम्बे मोरियो रेऽऽऽ
हो राज आम्बे झरे मोरिया रेऽऽऽ।

- छोरी! बंजर भूमि पर खड़े आम वृक्ष पर मंजरियाँ ढेर सारी आई हैं। छोरा! तू ने मुझसे पूछा है, पर तेरे देखने का तरीका मुझे ऐसा-वैसा लग रहा है। तू मुझ पर मोहित क्यों हो गया है? ऐसा तूने मुझमें क्या देखा है? तेरे सिर बोर और अन्य गहने देखकर मैं मोहित हो गया हूँ। छोरी! तू क्या देखकर मुझ पर मोहित हो गयी है? आम पर मंजरियाँ बहुत आई हैं। छोरा! तेरे सिर पर साफा देखकर मैं तुझ पर मोहित हो गयी हूँ। छोरा! बंजर भूमि पर खड़े आम पर मंजरियाँ ढेर सारी आयी हैं।