लोग कहते हैं मैं भी कैसी हूँ
ज़ख़्म खाकर न आह भरती हूँ
जब से देखी है प्यार की शिद्दत
दूर मैं नफ़रतों से रहती हूँ
प्यार की तिश्नगी गज़ब की है
खूब पीकर भी प्यासी रहती हूँ
आशियाने बना के तिनकों से
आंधियों से बचा के रखती हूँ
क्यों तड़पता है वो, ख़ुदा जाने
दिल का मैं हाल जब भी कहती हूँ
धूप में ख़ुद का देख कर साया
अपनी औक़ात याद रखती हूँ
‘देवी’ रिश्ता है क्या नहीं मालूम
जब वो जलता है मैं भी जलती हूँ