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लोग वे भी तो भले हैं / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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भाई
इस घर की खबर है
लोग बूढ़े हो चले हैं
 
जिये ये जिंदादिली से
उन्हीं शर्तों पर
जो बनती साँस को हैं
देवता का घर
 
हर घड़ी
हाँ आरती की
जोत बनकर वे जले हैं
 
घर पुराने वक्त का है
जी रहा है बस
यों अभी भी शेष इसमें
ज़िंदगी का रस
 
यही सच
पिछले मसीहे
इसी चौखट पर पले हैं
 
हो रहा है घर अपाहिज
नई रस्मों से
यह रहा है बँधा
पिछली कौल-कसमों से
 
जो इसे
कहते निकम्मा
लोग वे भी तो भले हैं