लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए 
यूँ याद तेरी शब-भर सीने में सुलगती है 
ख़ुशरंग परिंदों के लौट आने के दिन आए
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है 
यूँ प्यार नहीं छिपता पलकों के झुकाने से 
आँखों के लिफ़ाफ़ों में तहरीर चमकती है 
शोहरत की बुलंदी भी पल-भर का तमाशा है 
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है