भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोरी / मुरली चंद्राकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(कारी में गाया गया)

सुत जबे सुत जबे लल्ला रे सुत जबे न
एसे मजा के रे बेटा मोर पलना मा सुत जबे
सपना के रानी रे बेटा मोर निदिया में आही न
मुन्ना राजा बर भैया रे पलना सजाही न
चंदा के पलना रे भैया मोर रेशम के डोरी न
टिमटिम चमके रे बेटा मोर सुकवा चंदैनी न
गजरा गुंथाये रे लल्ला मोर चम्पा चमेली न
पलना झुलाही रे बेटा मोर सखी अऊ सहेली न
ऐसे के बेरिया म भैया मोर रानी जब आही न
लोरी सुना के रे बेटा मोर तोला सुताही न