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लोहे के पिंजरे में शेर / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय

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                    इस्माइल के लिए
(तुर्की की कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन नेता इस्माइल बिलेन)

शेर को देखो !
तलवार-सी तेज़ उसकी आँखों में विश्वास भरा है
और भरी है घृणा शत्रु के प्रति

वह पूरी ताक़त के साथ चक्कर काट रहा है पिंजरे में
पास आता है ... दूर जाता है ...
फिर वापिस आता है ... लौट जाता है ...

ताकि आँक सके कोई जौहरी उस पट्टे की क़ीमत
उसके झबरे अयालों पर बन्धा है जो ...
आज़ादी की इस प्रचण्ड आन्धी में ऐसा नहीं है कुछ
शेर को डरा सके जो

अपने पूरे पौरुष के साथ
वह चक्कर काट रहा है पिंजरे में
यहाँ से वहाँ ... वहाँ से यहाँ ...
यहाँ-वहाँ, वहाँ-यहाँ

और मेरी इस अन्धेरी कोठरी में
दीवार पर हिल-डुल रही है
शेर की बेचैन परछाईं

1931
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय