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लो बोझ आसमान का, डैनों पे तोलकर / जगदीश पंकज
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लो बोझ आसमान का, डैनों पे तोलकर ।
उड़ने लगा विहंग, आज पंख खोलकर ।
मौसम की बात साफ-साफ,कह के देखिए
सुख ही मिलेगा आपको, कटु-सत्य बोलकर ।
कितनी उमस है, धुन्ध-धुआँ आसमान में
ऊबे नहीं हैं लोग, अभी ज़हर घोलकर ।
हम हादसों से हरकतों में, आ गए मगर
संदिग्ध उँगलियों को भी, देखें टटोलकर ।
चाही थी स्वप्न में कभी, उजली कोई सुबह
'पंकज' उसी की आस में, बैठे हैं डोलकर ।