भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लौटते कभी नहीं / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Kavita Kosh से
लौटते कभी नहीं
आँसू में गाए दिन
ओस में नहाए दिन।
सुधियों कि गोद में
रात-रात जागकर
भारी पलकों में सजे
उलझी अलकों में सजे
बीते जो तुम्हारे बिन
लौटते नहीं कभी।
पहुँच किसी मोड़ पर
रिश्ते सभी छोड़कर
फिर दूर तक निहारते
उस प्यार को पुकारते
फिसले हाथ से जो छिन
लौटते कभी नहीं।