वंदना / प्रेमलता त्रिपाठी

वंदन करूँ माँ शारदे तव प्यार पाने के लिए।
यह साधिका तैयार है तुमको रिझाने के लिए।

इस भाव का हम मान अब कैसे करें मातेश्वरी,
संघर्ष करना है बहुत शुचि भाव लाने के लिए।

गणतंत्र है उलझा हुआ इंसान घाती बन चुका,
विश्वास दुर्बल हो रहा उसको बचाने के लिए।

जीवन फकीरी में गया हर काव्य धारा कह रही,
उठते रहे उद्गार सच जन-मन जगाने के लिए।

होता रहा संग्राम यों श्रंृगार लेखन हो कहाँ,
कुछ तो करो हे भारती ईर्ष्या मिटाने के लिए।

फिर प्रेम होजन-जन हृदय सत्प्रेरणा मिलती रहे,
मिलती रहे नवचेतना कण-कण सजाने के लिए।

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