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वक़्त का पहना उतार आये/ विनय प्रजापति 'नज़र'
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वक़्त का पहना उतार आए
कुछ लम्हे मरके गुज़ार आए
ख़ाबों में सही अपना तो माना
दिल को मेरे अपना तो जाना
खट्टे-मीठे रिश्ते चख लिए हैं
कुछ सच्चे पलकों पे रख लिए हैं
ख़ाहिशों का बवण्डर है दिल
दिल को उसके दर पे छोड़ आए
तेरी रज़ा क्या मेरी रज़ा क्या
वफ़ाई-बेवफ़ाई की वजह क्या
दस्तूर-ए-इश्क़ से रिश्ते हुए हैं
दिलों में रहकर फ़रिश्ते हुए हैं
ख़ला-ख़ला सजायी एक महफ़िल
महफ़िलों से उठके चले आए
वक़्त का पहना उतार आए
कुछ लम्हे मर के गुज़ार आए
रचनाकाल : 2003