वक्त के साथ ढलना हमें आ गया
देख के ग़म पिघलना हमें आ गया
लड़खड़ाने लगे रास्तों पर मगर
ठोकरों से सँभलना हमें आ गया
लोग काँटे बिछाते डगर में रहे
उनसे बच के निकलना हमें आ गया
जिंदगी भर तपे कर्म की आँच में
शाम के साथ ढलना हमें आ गया
एक संकल्प की ली कुदाली उठा
भाग्य अपना बदलना हमें आ गया