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वक्त ने मोहलत न दी वरना हमें मुश्किल न था / निश्तर ख़ानक़ाही

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ज़िंदगी को ज़र-ब-कफ़*, ज़र-फ़ाम* करना सीखते
कौन था वो, किससे हम आराम करना सीखते

वक्त ने मोहलत न दी वरना हमें मुश्किल न था
सरफिरी शामों को नज़रे-जाम करना सीखते

सीख लेते काश हम भी कोई कारे-सूद-मंद*
शेर-गोई छोड़ देते, काम करना सीखते

ख़ुद-ब-ख़ुद तय हो गए शामों-सहर अच्छा था मैं
सुबह करना सीख लेते, शाम करना सीखते

क़द्र है जब शोरो-ग़ोग़ा* की तो हज़रत आप भई
गीत क्यों गाते रहे, कोहराम करना सीखते

1- ज़र-ब-कफ़--मुट्ठियों में सोना

2- ज़र-फ़ाम--सोने जैसा रंग

3- कारे-सूद-मंद--लाभदायक

4- शोरो-ग़ोग़ा--शोर-शराबा