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वचन-प्रवचन / बुद्ध-बोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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प्रथम धर्मचक्रप्रवर्तन (सारनाथ)
तथागतक सम्बोधन कोनहु नामेँ भय न सकैछ
मित्र-बन्धुता सम्बन्धो नहि कहले जाय सकैछ
बुद्ध बोधमय हुनक रूप, समदर्शी सबहि समान
शत्रु न क्यो तेँ सभक मित्र छथि शिष्यहु पुत्र प्रमान
पिता कही, गुरु पद संबोधित करी सैह उपयुक्त
श्रद्धेयक प्रति श्रद्धा राखब श्रमणक धर्म प्रयुक्त
तथागतक मत मध्यम मार्गक ने कठोर ने नर्म
ने लघुतम ने महत्तमहु, जे साध्य मनुजकेर मर्म
धर्मक नामेँ ने पचाग्निक तप अनशन कटु कष्ट
ने विलासमय जीवन यापन अशन - शयनसँ नष्ट
भोग - योग उपयोगहिँ सम्यक् जीवन हो सुखदाय
मध्यम मार्गक अनुसरणहि संबोधक करिअ उपाय
जतबासँ जीवनयात्रा - पथ सहज तते पाथेय
ने हो अधिक भार न् संभार न रिक्तताहु सन्धेय