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वन-वन में फागुन लगा, भाई रे ! / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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वन-वन में फागुन लगा, भाई रे !
पात पात फूल फूल डाल डाल
देता दिखाई रे !!
अंग रंग से रंग गया आकाश गान गान निखिल उदास ।
चल चंचल पल्लव दल मन मर्मर संग ।
हेरी ये अवनी के रंग ।
करते (हैं) नभ का तप भंग ।।
क्षण-क्षण में कम्पित है मौन ।
आई हँसी उसकी ये आई रे ।
वन-वन में दौड़ी बतास ।
फूलों से मिलने को कुंजों के पास ।।
सुर उसका पड़ता सुनाई रे !!

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल