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वन के बीच एक बर्फ़ीली शाम / रॉबर फ़्रास्ट / अनिल जनविजय

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किसका है यह वन शायद यह बात मुझे पता है
रहता है वो दूर वहाँ उस गाँव में कहीं अगरचे
वो नहीं जान पाएगा मैं यहाँ रुका हूँ, आतुरता है
देख रहा हूँ उसके वन को गिरती बर्फ़ से भरते

मेरे छुटके घोड़े को यह सब लगे बेहद अटपटा
जंगल में ठण्ड से जम गई झील, मौसम लटपटा
आसपास न फ़ार्म है कोई, और है न कोई घर
शाम अन्धेरी साल की सबसे औ’ तिमिर मनहर

गर्दन हिला अश्व ने धीमे से, बजाए साज के घूँघरू
पूछा मुझसे क्या करते हो, कहाँ ठिठक गए, ओ गुरु
हलकी हवा बहे वन में, उसकी सरसराहट दे सुनाई
जमने लगी कोमल परत बर्फ़ की, जैसे मौसम की झाँई

वन है मनोरम, फैल चुका है चहुँओर तम गहरा
कोस कई जाना है मुझे अभी, पार कर यह अन्धेरा
और मुझे निभाने हैं वचन, कुछ पूरे करने हैं वादे
सोने से पहले पूरे करने हैं मन के कई इरादे

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
                      ROBERT FROST
       Stopping by Woods on a Snowy Evening

Whose woods these are I think I know.
His house is in the village though;
He will not see me stopping here
To watch his woods fill up with snow.

My little horse must think it queer
To stop without a farmhouse near
Between the woods and frozen lake
The darkest evening of the year.

He gives his harness bells a shake
To ask if there is some mistake.
The only other sound’s the sweep
Of easy wind and downy flake.

The woods are lovely, dark and deep,
But I have promises to keep,
And miles to go before I sleep,
And miles to go before I sleep.