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वन में पड़े हिम का नीरव गीत / ओसिप मंदेलश्ताम

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वन में
पड़े हिम का नीरव गीत
तेरे क़दमों का संगीत

तू सरकी
उस हिम-दिवस को वैसे
सरके कोई छाया धीमे-से जैसे

गहरा था
जाड़ा रात की तरह
झालर-सी बर्फ़ टंगी थी सौगात की तरह

कौओं ने
अपनी टहनी पर रहकर
जीवन में देखा है सब-कुछ सहकर

मन में
उठती है एक तरंग
सपना एक दौड़े बन उमंग

प्रेरणा सारी
चकनाचूर हो पहुँची गर्त
जैसे टूटी हो कोमल-ताज़ा हिम की पर्त

मेरे मन का
यह हिम कोमल
नीरवता में हुआ सबल


(रचनाकाल :1909)