वफादारी हमारे वास्ते बिल्कुल ज़रूरी है
अगर है प्यार ग़ज़लों से तो दूरी भी न दूरी है। 
उठाकर सिर चलेंगे अब कहेंगे ख़ूब ग़ज़लें हम
मगर मीटर रदीफो-काफिया कि जी हुजूरी है
कठिन कुछ भी नहीं अभ्यास की ये बात हैं सारी
सरल शब्दों में भावों को पिरो दें ग़ज़्ल पूरी है। 
कभी मतला कभी मक्ता कभी शेरों की दुनिया में
करेंगे बात हर पूरी जो अब तक भी अधूरी है। 
ग़ज़ल की बात आते ही मचल जाती है हर ख्वाहिश
कहीं भी हम रहें हरदम नज़र में एक नूरी है।