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वर्तमान / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
युग
अराजकता-अरक्षा का,
सतत विद्वेष-स्वर-अभिव्यक्ति का,
कटु यातनाओं से भरा,
अमंगल भावनाओं से डरा !
धूमिल
गरजते चक्रवातों ग्रस्त !
प्रतिक्षण
अभावों-संकटों से त्रस्त !
युग
निर्दय विघातों का,
असह विष दुष्ट बातों का !
अभोगी वेदना का,
लुप्त मानव-चेतना का !
घोर
अनदेखे अँधेरे का !
अजनबी
शोर,
रक्तिम क्रूर जन-घातक
सबेरे का !