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वर्षान्त पर / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
"प्रिय भाई,
बधाई !
नव-वर्ष
सत्फल भाग्यशाली हो,
अत्यधिक सुख दे
अमित सम्पन्नता दे
विपुल यश दे
- रस-कलश दे !’
- रस-कलश दे !’
मित्रों की
सहज
या
औपचारिक
- ये अनेकानेक
- ये अनेकानेक
मंगल कामनाएँ
और सुन्दर भावनाएँ
वर्ष-भर
छलती रहीं,
सौभाग्य को
दलती कुचलती रहीं !
सुख को —
तरसता ही रहा,
सम्पन्नता पाने —
कलपता ही रहा,
यश के लिए —
उत्सुक तड़पता ही रहा,
रस की
छलकती मधुर
कनक-कटोरियों को
मन ललकता ही रहा !
नव-वर्ष का
जैसा
किया था आगमन-उत्सव,
नहीं
वैसी बिदाई !
क्या कहें कुछ और
प्रिय भाई !