वल्लभाचार्य / यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
रे पियूष आगार ससि, क्यों न झरत इत ओरि
ये चकोर मन कन त्रसित, बस्यौ तिहारी पौरि
स्वस्ति श्री मन्मदमन सुमोहन जयति जयति जय
श्री वल्लभ आचार्य चरन जग वन्दित जय जय
श्री विट्ठल गोस्वामि वर्य गोकुलपति जय जय
जयति पुष्टि जन सकल कृष्ण जिहिं नाम जपति जय
श्री मद वल्लभ वंश बाल गुण गौरव शाली
अमर बेलि सी फलित कल्प तरु वेष्टित डाली
जस पुहुपन के पुंज सु-वासित दिशि दिशि फूले
कवि 'प्रीतम' प्रिय मधुप पुष्टि सौरभ रस झूले
ए हो पुष्टि प्रकाश शिष्य उडुगन के स्वामी
कृष्ण भक्ति रस भाव व्योम के तुम अनुगामी
भव रुजि औषधि ईश रजनि हिय अघ तम नाशी
सुयश शरद सौंदर्य रूप गुण रश्मि स्वराशी
पूर्णकला पीयूष मय, मन-वपु निगमन श्रुति कहत
क्यों चकोर 'प्रीतम' तबहु, कहु शशि आपन तन दहत
श्री मद वल्लभ बन्हि वंश प्रगटौ जब जग में
जीव ब्रह्म सम्बन्ध पुष्टि भौ तब ता मग में
अधम अभागे अघी दया तिन पै हू कीन्ही
मिश्री भोग धराय सुलभ सेवा हू दीन्ही
कवि 'प्रीतम' पावन सदा, पायौ जिन गोस्वामि पद
पतितोद्धारक पथ पुष्टि रच्यौ जग बंदित श्रीमद