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वसंत-स्मृति / मोहन अम्बर

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मैं तुम्हें याद करता हूँ तुम मुझे भूल मत जाना।
थी आज वसंती रात चाँद भी आया,
तो चूम विजन की गंध पवन बौराया,
इसलिये बचपनी याद प्रीति बन जाती,
इन सांसों का संदेश तुम्हें पहुँचाती,
मैं बना बाग़ रखवाला, तुम गंध चुराने आना,
मैं तुम्हें याद करता हूँ तुम मुझे भूल मत जाना।
लो देख गगन का रंग, बुल-बुलें बोलीं,
क्या सूरज, धरती लगे खेलने होली?
इसलिए कोकिला मौन नहीं रह पाती,
इन साँसों का संदेश तुम्हें पहुँचाती,
हूँ अभी दूध-सा बादल तुम रंग चढ़ाने आना
मैं तुम्हें याद करता हूँ तुम मुझे भूल मत जाना।
यह सत्य कि तुम में मुझ में काफ़ी दूरी,
पर छोड़ न सकता दर्शन-साध अधूरी,
इसलिए हृदय की बात अधर पर आती,
इन साँसों का संदेश तुम्हें पहुँचाती,
मैं जनम-जनम ढूँढूंगा तुम अधिक नहीं भटकाना।
मैं तुम्हें याद करता हूँ तुम मुझे भूल मत जाना।