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वसंत में ठंड / अरविन्द पासवान
Kavita Kosh से
इस वर्ष
वसंत में वसंत नहीं
लौट आयी है फिर से
ठंड
हाड़ कंपकंपाने वाली
बूढ़े बरगदों को जड़ों से हिलाने वाली
कभी-कभी शाप बनकर लौटती है लहरें
समुद्र की
दुखों के सागर
जीवन में
तड़प प्रेम की
अनायास
कभी-कभी
लौट आती है शाम पहले
सुबह से