वसंत में पीपर / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा
बाग-बगैया देखते-देखते सुनसान हो जाहे,
हर वसंत में ई पीपर जवान हो जाहे।
रोज सुनावे हे ई अप्पन कहानी,
जड़ हे लेकिन ई हे बड़ी ज्ञानी।
सब दिन से सबके दे रहल नया प्राण,
इहे ले करो ही हम एक्कर गुणगान।
छाया, फल देते-देते महान हो जाहे,
हर वसंत में ई पीपर जवान हो जाहे।
पतझर में झर जाहे एक्कर सब पात,
शोभे है नयका सब पत्ता दिन-रात।
सहे हिम आतप वरसा के अघात,
बड़ी पवित्तर एकर जड़ एकर गात।
शनिवार ऐला पर ई भगवान हो जाहे,
ग्रीष्म में गाय-गोरू के देहे छाया,
कत्ते ने चिड़ियाँ के बसेरा फैलल माया।
चिरई-चुरमुन्नी के करे फलदान,
एकरे तर जोखू बनैलक मचान।
ई गाँव के इतिहास के पहचान हो जाहे,
सोमारी अमस्या के देलन सब फेरी,
हाथी के ऐला पर कटल डाल ढेरी।
अंधड़, तूफान के सहते ई आल,
देखलक हें गाँव में कत्ते बबाल।
कत्ते गरीब, कत्ते धनवान हो जाहे,
हर वसंत में ई पीपर जवान हो जाहे।