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वसन्त का रूप मुझे रोकता है / थीक न्हात हन / सौरभ राय

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वसन्त आता है चुपचाप,
शरद लौट जाता है
हँसकर
पर्वतों पर दोपहर की धूप में
विषाद पिघलता है।

लड़ाइयाँ निशान छोड़ती हैं
हवाओं पर
वियोग और मृत्यु फूलों की तरह
रास्तों पर बिछे हैं
मैं एकान्त में इन्हें हटाता हूँ
और ढूँढ़ निकालता हूँ अपना ह्रदय
सुर्ख लाल
जो मेरे त्याग की निशानी है

वसन्त का रूप मुझे रोकता है
मैं पर्वतों तक पहुँचना चाहता हूँ

भोग रहा हूँ अवसाद
मेरी आत्मा जम गई है
मेरा ह्रदय वीणा के तार-सा काँपता है
तूफ़ानी रात में पड़ा हूँ अकेला
हाँ, सबकुछ यहीं हैं, सचमुच
वसन्त का आगमन सच है
मगर चिड़ियों के दारुण कलरव के बीच
मुझे सुनाई देता है दूर किसी के रोने का स्वर
बसन्ती हवा एक गीत है
मेरा प्रेम और मेरी करुणा है;
मैं अकेला ही आया था
और जाऊँगा अकेला ही।

घर लौंटने के कई रास्ते हैं
जो एकान्त में मुझे अपना हाल सुनाते हैं
वसन्त आ चुका है
सभी दिशाएँ गा रही हैं अवसाद के गीत
देखो,
खिल उठा है वसन्त।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सौरभ राय