भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वसीयत / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिण ठौड़
चुगूं म्हैं स्क्रेप
चांदमारी इलाकै में
म्हारै कांई-किसी हुयां पछै
उण ठौड़
चुगैला म्हारो लाडेसर।

ठेकेदार जी!
आ वसीयत है
अणलिखी
अेक मजूर री
जिण नैं मानणो का नीं मानणो
आपरै हाथां है।