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वहाँ अलका की वधुएँ षड्ऋतुओं के फूलों से / कालिदास
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हस्ते लीलाकमलमलके बालकुन्दानुविद्धं
नीता लोध्रप्रसवरजसा पाण्डुतामानने श्री:।
चूडापाशे नवकुरवकं चारु कर्णे शिरीष:
सीमन्ते च त्वदुपगमजं यत्र नीपं वधूनाम्।।
वहाँ अलका की वधुएँ षड्ऋतुओं के फूलों
से अपना शृंगार करती हैं। शरद में कमल
उनके हाथों के लीलारविन्द हैं। हेमन्त में
टटके बालकुन्द उनके घुँघराले बालों में गूँथे
जाते हैं। शिशिर में लोध्र पुष्पों का पीला
पराग वे मुख की शोभा के लिए लगाती हैं।
वसन्त में कुरबक के नए फूलों से अपना
जूड़ा सजाती हैं। गरमी में सिरस के सुन्दर
फूलों को कान में पिरोती हैं और तुम्हारे
पहँचने पर वर्षा में जो कदम्ब पुष्प खिलते
हैं, उन्हें माँग में सजाती हैं।