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वहाँ अलका में कुबेर के मित्र शिवजी को / कालिदास

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मत्‍वा देवं धनपतिसखं यत्र साक्षाद्वसन्‍तं
     प्रायश्‍चापं न वहति भयान्‍मन्मथ: षट्पदज्‍यम्।
सभ्रूभङ्गप्रहितनयनै: कामिलक्ष्‍येष्‍वमोघै-
     स्‍तस्‍यारम्‍भश्‍चतुरवनिताविभ्रमैरेव सिद्ध:।।

वहाँ अलका में कुबेर के मित्र शिवजी को
साक्षात बसता हुआ जानकर कामदेव भौंरों
की प्रत्‍यंचावाले अपने धनुष पर बाण चढ़ाने
से प्राय: डरता है।
कामीजनों को जीतने का उसका मनोरथ
तो नागरी स्त्रियों की लीलाओं से ही पूरा
हो जाता है, जब वे भौंहें तिरछी करके
अपने कटाक्ष छोड़ती हैं जो कामीजनों में
अचूक निशाने पर बैठते हैं।