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वहाँ आज कीचड़ / प्रेमशंकर शुक्ल
Kavita Kosh से
जहाँ पानी का जलसा होता था
वहाँ आज कीचड़ हँसता है
इतना सूख गई है
झील
कि झील का ‘झ' झुलसा हुआ दिखता है !
‘ई' पपडि़याई हुई !!
‘ल' की लाज भर के लिए
केवल अब पानी है !!!