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वहाँ कैसे कोई दिया जले, जहाँ दूर तक हवा न हो / नवाज़ देवबंदी

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वहाँ कैसे कोई दिया जले, जहाँ दूर तक हवा न हो
उन्हें हाले-दिल न सुनाइये, जिन्हें दर्दे-दिल का पता न हो

हों अजब तरह की शिकायतें, हों अजब तरह की इनायतें
तुझे मुझसे शिकवे हज़ार हों, मुझे तुझसे कोई गिला न हो

कोई ऐसा शेर भी दे ख़ुदा, जो तेरी अता हो, तेरी अता
कभी जैसा मैंने कहा न हो, कभी जैसा मैंने सुना न हो

न दिये का है, न हवा का है, यहाँ जो भी कुछ है ख़ुदा का है
यहाँ ऐसा कोई दिया नहीं, जो जला हो और वो बुझा न हो

मैं मरीज़े-इश्क़ हूँ चारागर, तू है दर्दे-इश्क़ से बेख़बर
ये तड़प ही इसका इलाज है, ये तड़प न हो तो शिफ़ा न हो