वही की वही है कहानी अभी तक
है दिल पर तेरी हुक्मरानी अभी तक
कहीं से कहीं उम्र पहुंची है तेरी
है चेहरा मगर ज़ाफरानी अभी तक
वो बख़्शे हुए ज़ख़्म अब भी हरे हैं
सम्हाले है दिल वो निशानी अभी तक
बज़ाहिर हुई दोस्ती पहले जैसी
मगर दिल में है बदगुमानी अभी तक
बिना बात के रूठ जाती है अब भी
गई है न आदत पुरानी अभी तक
न जाओ सफेदी पे मेरी न जाओ
लहू में है वो ही रवानी अभी तक
सुबह से हुई दोपहर, बैठे बैठे
न आया मगर चाय-पानी अभी तक
न कोई सितम हम पे ढाया, ‘अकेला’
है उनकी बड़ी मेह्रबानी अभी तक