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वही तो है कविता / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
जब तुम्हारे और मेरे
ऊपर की रेखा
हो चुके एक
और उपजाए कोई अर्थ
शुरु हो जाए एक लय
अनुगूंज ब
बाहर-भीतर
जगाए भीतर को
रचाए बाहर को
झारे एक शब्द-श्रृंखला
वही तो है कविता