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वह 'मरनी' / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
जंगल की आग से
जन्मी है एक औरत
सुर्ख़ होती है
अख़बार के फलक पर
स्याही की बूंद
और कलम की नोंक पर
वह जुगनू-सी
चमकती है
पर्चों पर उगती है
तलवार
बार-बार
तराशने गर्दन उसकी
किन्तु लहू ढलकती स्याही
नोंक पर चढ़ाती है ‘सान’
काटती है तलवार
मरते-मरते
वह फिर जी जाती है
किन्तु वह
‘मरनी’ कहलाती है।