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वह इस युग का / केदारनाथ अग्रवाल

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जीकर भी जो जिए नहीं
वह नर है,
मरकर भी जो डरे नहीं
वह डर है,
बनकर भी जो बने नहीं
वह घर है,
खुलकर भी जो खुले नहीं
वह स्वर है,
वह इस युग का; कर-बल-छल का
वर का।

रचनाकाल: १५-११-१९६१