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वह जो ‘है’ और ‘नहीं है’ / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
वह जो ‘है’
और ‘नहीं है’
इनके बीच में रेखा नहीं है
वह जो ‘है’ को देखते हैं
‘नहीं है’ को नहीं देखते हैं
वह जो ‘नहीं है’ को देखते हैं
‘है’ को नहीं देखते हैं
कुछ हैं जो दोनों को देखते हैं
सृष्टि का रहस्य
वही भेदते हैं
दिक् और काल
इसीलिए हैं
कि ‘है’ और ‘नहीं है’
दोनों वहाँ हैं
रचनाकाल: १८-०९-१९६५