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वह तितली है, यह बिस्तुइया / हरिवंशराय बच्चन
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वह तितली है, यह बिस्तुइया।
यह काली कुरूप है कितनी!
वह सुंदर सुरूप है कितनी!
गति से और भयंकर लगती यह, उसका है रूप निखरता।
वह तितली है, यह बिस्तुइया।
बिस्तुइया के मुँह में तितली,
चीख हृदय से मेरे निकली,
प्रकृति पुरी में यह अनीति क्यों, बैठा-बैठा विस्मय करता
वह तितली थी, यह बिस्तुइया।
इस अंधेर नगर के अंदर
--दोनों में ही सत्य बराबर,
बिस्तुइया की उदर-क्षुधा औ’ तितली के पर की सुंदरता।
वह तितली है, यह बिस्तुइया।