वे कहते गये हाँ, हाँ,
और फूल-हार
उन पर चढ़ते गये;
पाँवड़ों और वन्दनवारों की
सुरंग-सी में वे निर्द्वन्द्व
बढ़ते गये।
सुखी रहें वे
अपनी हाँ में।
लेकिन जिस का नकार
उस की नियति है
वह भी नकारता रहे
निर्द्वन्द्व, निरनुताप।
बार-बार-जब भी पूछा जाय!
वह हारता रहे,
टूटता हुआ
इतिहास की तिकठी पर
निर्विकार-
वह नकारता रहे।