भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह फिर आ रहा है / गोबिन्द प्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


किरनों के
अदृश्य हाथ
उसे छूते हैं
धीरे-धीरे
एक रूप फिर कसमसाता है
उजास की आभा लिए
वह फिर आ रहा है
उदित भाल