वह रचती है जीवन और... / कात्यायनी
नारी की रचना इसलिए हुई है कि पुरुष अपने पुत्रों, देवताओं से वंश चला सके – ऋग्वेद संहिता
नारी की रचना हुई
मात्र वंश चलाने के लिए,
जीवन को रचने के लिए
उन्होंने कहा चार हज़ार वर्षों पहले
नए समाज-विधान की रचना करते हुए।
पर वे भूल गए कि
नहीं रचा जा सकता कुछ भी
बिना कुछ सोचे हुए।
जो भी कोई कुछ रचता है – वह सोचता है।
वह रचती है
जीवन
और जीवन के बारे में सोचती है लगातार।
सोचती है –-
जीवन का केन्द्र-बिन्दु क्या है
सोचती है -–
जीवन का सौन्दर्य क्या है
सोचती है -–
वह कौनसी चीज़ है
जिसके बिना सब कुछ अधूरा है,
प्यार भी, सौन्दर्य भी, मातृत्व भी…
सोचती है वह
और पूछती है चीख़ -चीख़कर।
प्रतिध्वनि गूँजती है
घाटियों में मैदानों में
पहाडों से, समुद्र की ऊँची लहरों से
टकराकर
आज़ादी !!! आज़ादी !!! आज़ादी !!!