भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह लड़का-2 / रामकृष्‍ण पांडेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह लड़का
जो अपने घर का रास्ता
भूल गया है
उसे घेरकर
एक भीड़ खड़ी है

उस भीड़ में
अपने को
असहाय महसूस करता है
वह लड़का

उस लड़के की आँखों में
भय नहीं है
एक अकेलपन है
उस अकेलेपन से
उबरने की एक बेचैनी है

एक के बाद एक
भीड़ के चेहरों को देखता है
वह लड़का

वह लड़का पहचान बनाना चाहता है
भीड़ के किसी एक चेहरे के साथ
कोई चेहरा उसका साथ नहीं देता

अपनी आतुर आँखों में
भिखारी-सी याचना लेकर
भीड़ के चेहरों को
देखता है वह लड़का
कोई चेहरा उसका साथ नहीं देता

एक कातर तरलता पैदा होती है
उस लड़के की आँखों में
कोई चेहरा उसका साथ नहीं देता

अपने को खोया हुआ
महसूस करने लगता है
वह लड़का

हम सब उस खोए हुए
लड़के की तरह हैं
अपनी कातर-तरल आँखों में
भिखारी की आतुर याचना लिए
इस शहर की भीड़ में
खड़े हैं