भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह - 3 / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
वह
जाकर
चली आती है
रूपए लेकर
बलात्कार भोगकर
दूसरों के साथ,
ब्याह गए
बुद्धू के साथ
समाज की आँखों में
जीने के लिए
कैद
और कुंठित।
रचनाकाल: २०-०६-१९७२