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वह / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
सच है तुमने
निरपराध को अपराधी-सा,
अफसरशाही के प्रकोप से,
नागपाश में जकड़ लिया है;
निस्सहाय है आज
किंतु वह नहीं मरा है-नहीं मरेगा!
सच है तुमने
जीवन का स्वर,
और सत्य का मुखर सबेरा,
कारागृह की दीवारों में कैद किया है;
निस्सहाय है आज
किंतु वह नहीं मरा है-नहीं मरेगा!
रचनाकाल: २६-११-१९५२