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वागाम्भृणी सूक्त, ऋग्वेद - 10 / 125 / 3 / कुमार मुकुल
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इ सब देश आ दिशा के मलकिनी
आउर सबके धन-धान देवे वाली
हमहीं बानीं।
सबके गेयान बांटे वाली
आउर भला-बुरा बतावेवाली
चेतावेवाली हमहीं हईं।
सब जड़-जंगम पदारथन में
बिजुरी बन के छुपल
हमहीं बानी।
हमार दुनिया अपरमपार बा ॥3॥
अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् ।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयन्तीम् ॥3॥