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वाटिका / श्रीनाथ सिंह
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देखो यह वाटिका निराली।
मन हरने वाली हरियाली।
झूम रही क्या डाली डाली।
लगा सींचने में है माली।
पत्तों का हिलना है जारी।
फूलों का खिलना है जारी।
महक रहीं हैं गलियां सारी।
चहक रहीं हैं चिड़ियाँ प्यारी।
खिली चमेली फूला बेला।
भारी है भौरों का मेला।
खड़ा हुआ है क्या अलबेला।
लिये फलों का गुच्छा केला।
रंग बिरंगे सुंदर सुन्दर।
चुन चुन कर मैं फूल मनोहर।
लूँगा छिन भर में टोपी भर।
दूंगा सबको हार बनाकर।
रोज यहीं पर आता हूँ मैं।
खूब घूमता गाता हूँ मैं।
हवा प्रात की खाता हूँ मैं।
मनमाना सुख पाता हूँ मैं।