Last modified on 15 नवम्बर 2009, at 23:54

वातायन / नये सुभाषित / रामधारी सिंह "दिनकर"

निज वातायन से तुम्हें देखता मैं बेसुध,
जब-जब तुम रेलिंग पकड़ खड़ी हो जाती हो,
चाँदनी तुम्हारी खिड़की पर थिरकी फिरती,
तुम किसी और के सपने में मँडराती हो।