भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वापसी जहाँ होगी / तेज राम शर्मा
Kavita Kosh से
जब मैं वापसी की सोचता हूँ
तो बहुत आगे निकल चुका होता हूँ
अपनी नियति को बदलने में असमर्थ
यात्रा पर मेरे पहले कदम के साथ-साथ
हवा ने भी अपना रुख बदला होगा
काली बिल्ली काट गई होगी रास्ता
यादव वंश–सा कोई शाप
वहाँ भी फलीभूत हुआ होगा
मुझे डर है
कुम्भीपाक उतर आया होगा
दंत-कथाओं से
ज़मीन पर
उंगलियों के छोर पर
बढ़ आए होंगे नाख़ून
समय नशे में धुत
जगमगाते शहरों में भटक गया होगा
थैली की गर्दन पर
कस गई होगी उसकी पकड़
वापसी जहाँ होगी
समय नहीं ताने होगा वहाँ
तोरण और बंदनवार
वहाँ दहलीज़ पर
फैल गए होंगे कुकुरमुत्ते।