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वापसी / विनोद भारद्वाज
Kavita Kosh से
पलक के लिए
मैं हमेशा लौट आती हूँ
तुम मुझे गुम हो गई न समझना
फिर सोचती हूँ कि क्या यह दुनिया सचमुच
लौटने लायक हो गई है
क्या मुझे चुपचाप फिर लौट जाना चाहिए
उस बर्फ़ के ज़बरदस्त ढंग से
जमे हुए एकान्त में
वो जो कवि है
वह बेकार ही ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा पीटे जा रहा है
फिर वह बदहवास होकर बड़बड़ा रहा है
मुझे एक तो दो श्रोता
मेरे पास दुनिया को बदलने के कुछ गुप्त तरीके हैं ।