♦   रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
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वारे लाँगुरिया रुक मत जइयो कहूँ गैल में॥  टेक
तोय दऊँ पहले ही बतलाय॥  लाँगुरिया.
वारे लाँगुरिया जो रुकि गयौ कहुँ गैल में,
फिर तौ लेगौ देर लगाय॥  लाँगुरिया.
वारे लाँगरिया मोय आदत तेरी नहीं भावत है,
तू तो सुन लै रे चितलाय॥  लाँगुरिया.
वारे लाँगुरिया मैंने बोली जात करौली की,
हम तौ दरस करेंगे वहाँ जाय॥  लाँगुरिया.
वारे लाँगुरिया गोद मेरी देखि सूनी है,
अब मैया तो देगी भराय॥  लाँगुरिया.